Janki Navami 2020: देवी सीता को सनातन संस्कृति के दो महाकाव्यों रामायण और रामचरित मानस में मां का दर्जा दिया गया है। इन दोनों महाकाव्यों ने श्रीराम और सीता को भारतभूमि पर सनातन धर्मावलंबियों के घरों में आराध्य देव के रूप में स्थापित किया है। देवी सीता भूमि से प्रकट हुई, अयोध्या की महारानी बनी, पति के साथ चौदह सालों तक घने वनों में निवास किया और अपहरण होने के बाद लंकापति रावण की लंका में भी रही। देवी सीता में कई विशेषताएं थी आइए एक नजर डालते हैं उनके जीवन के कुछ अनछुए पहलूओं पर।
33 वर्ष की उम्र में बनी थी अयोध्या की महारानी
रामचरित मानस में सीता शब्द का उल्लेख कुल 147 बार आया है। वाल्मिकी रामायण के अनुसार देवी सीता का विवाह बाल्यावस्था में ही हो गया था और वह सिर्फ 18 वर्ष की उम्र में अपने पति श्रीराम के साथ वनवास के लिए प्रस्थान कर गई थी। वन में लंकापति रावण के द्वारा देवी सीता का अपहरण कर लिया गया था। लंका में वह कुल 435 दिनों तक रही थी। माता सीता जब अयोध्या का महारानी बनी थी उस समय उनकी आयु 33 साल की थी। मान्यता है कि जब माता सीता लंका में थी उस समय उनका वास्तविक स्वरूप अग्नि देव के पास था। रावण के पास देवी सीता की प्रतिछाया थी।
विवाह के बाद जनकपुर कभी नहीं गई थी सीताजी
सीताजी के स्वयंवर का उल्लेख रामचरित मानस में मिलता है, लेकिन वाल्मीकि रामायण में नहीं। वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्रीराम अपने गुरु महर्षि विश्वामित्र के साथ जनकपुर गये थे जहां पर उन्होंने शिव धनुष उठाया और उसकी प्रत्यंचा चढ़ाते वक्त वह टूट गया। महाराज जनक ने प्रण किया था जो धनुष को उठाकर उसको तोड़ देगा उससे अपनी पुत्री सीता का विवाह करेंगे।
श्रीराम से विवाह के बाद माता सीता कभी लौटकर अपने मायके जनकपुर नहीं गई। वनवास के समय उनके पिता महाराजा जनक ने देवी सीता को जनकपुर ले जाने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन सीताजी ने अपने पति श्रीराम के साथ वनवास जाना ज्यादा उचित समझा। भगवान श्रीराम ने सरयू में जल समाधि ली थी, जबकि देवी सीता सशरीर धरती में समा गई थी।
कैकयी ने किया था सीताजी को कनक भवन भेंट
शास्त्रों में कैकयी को सीता और श्रीराम के वनवास के लिए जिम्मेदार माना जाता है। कैकयी ने महाराजा दशरथ से श्रीराम के लिए वनवास मांगा था, लेकिन एक समय ऐसा भी था जब कैकयी सीता को बहुत चाहती थी। सीताजी जब विवाह के बाद अयोध्या आई थी तो कैकयी सीताजी को देखकर बहुत खुश हुई थी। देवी सीता के व्यवहार और उनकी खूबसूरती पर कैकयी मोहित हो गई थी।उस समय कैकयी ने देवी सीता को उपहार में कनक भवन दिया था। मान्यता है कि वर्तमान में अयोध्या में मौजूद कनक भवन कैकयी द्वारा उपहार में दिया गया कनक भवन है। अयोध्या के इस कनक भवन के गर्भगृह में वह स्थान है जहां भगवान राम विश्राम किया करते थे। इसके पास ही आठ सखियों के कुंज भी स्थापित है। भगवान श्रीराम और देवी सीता अक्सर इस महल में समय व्यतीत करने के लिए आया करते थे।